Monday 15 December 2014

तुम

न यादें है तुम्हारी
न है कोई निशां
पर इश्क है तुमसे, इतना है पता
न मिला हुँ तुझसे
न हुँ तुझसे मै जुदा
बस इतना है पता,
कई बार आरजू तेरी सिने मे होती है
तो कई बार ,
दर्द तुझ बिन जीने से होती है
बस इतना है पता, बस इतना है पता
न मुस्कुराता हुँ मैं
न रो पाता हुँ मैं
जब से जाना है तुझे, निंदे खो सी गई
अब कहाँ रातों को सो पाता हुँ मैं
तुम ही तुम हो, ख्वाबों मे मेरी
तुम ही तुम हो, बातों मे मेरी
मैं हुँ तुम ही से, इश्क भी है तुझसे
बस इतना हैं पता.......
इक लौ भी जल उठी है, बुझी-बुझी सी
खुश्बू-ए-इश्क से महक उठा है समां
हक तो नहीं है तुझपे
फिर भी तुमसे हुँ मै, बस इतना हैं पता
न जाने ये हक कैसा
कैसी इश्की ये दास्तां ?
क्या पता?!!?
बस तुम हो, सिर्फ तुम इस मन में
बस इतना ही हैं पता     ....

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