Saturday 22 October 2016

सर्दी की बातें

ये जो शाम का धुंधलापन है
इन्हे यूं ही रहने दो
ये जो कपकपाती रातें है
इनमे चादर तले सिस्कारियाँ भरने दो
उजला-उजला सा जो है सवेरा
जरा बांहो को सिकोड़ लेने दो
ये जो घटा छायी है
जरा इन्हें महसूस करने दो
कहीं धुमिल न हो जाए ये
आँखें तो खोल लेने दो
ये जो शाम का धुंधलापन है
इन्हें यूं ही रहने दो
अभी- अभी तो नींद आयी थी
यूं न जगाओ, जरा सोने दो
अदभुत एहसास है तुम्हारा
चार माह का सफर, फिर मिलना दोबारा
जो मदमाती दोपहरी है तेरी
इनकी मादकता मे मुझे भी खोने दो
बस सब कुछ यूं ही रहने दो।

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