Wednesday 4 January 2017

मिलन

ये विचारो का मिलन
ये मेरी भावनाओँ का भवन
विकसित रहे, पुलकित रहे
मेरी खुशियोँ का ये चमन
थोडे काबिल हम भी
जरा गौर तो करो
अब तक कहाँ हो तुम मगन?
ये विचारो का मिलन. . . .
इन्हेँ 'कुछ भी' न कहो तुम
ये एक मुकम्मल जहां है
कही रूठ न जाए ये पवन
आधी उम्मीद हममेँ है
कुछ तुम जगा दो
कहीँ हो न जाए फिर ये दफन
ये विचारो का मिलन. . .

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