Tuesday 25 July 2017

उम्र - एक पड़ाव

हाय रे! उम्र, तु क्यों ढ़लता है?
यूं तो ठिक था मैं, फिर भला तू क्यों बदलता है?
हाय रे! उम्र, तु क्यों ढ़लता है?
अभी बीत ही रहा था ये बचपन
जहाँ चंचल होता था हरेक पल मन,
न जाने, कब आ गई ये जवानी?
अलहड़पन, वो मौज-मस्ती
हरेक मौसम हो गई रुमानी,
बातों पर बातें, बेबाक हँसी-ठिठोली
होती थी हर रात दीवाली और दिन होली
न जाने कब ये बीत गए?
'बुढ़ापा' उम्र का ये कैसा पड़ाव,
क्या यही है, आखरी ठहराव?
सहम जाता हुँ, दिल पसीज सा जाता है,
ये बुढ़ापा क्यों आता है?
जब छोड़ अपने, आगे बढ़ जाते है
तब मन ये मेरा भी जलता
हाय रे! उम्र, तु क्यों ढ़लता है?
न तु बदलता, न मैं निर्बल मालूम पड़ता
आज मैं भी समय के साथ चलता,
यूं न अपने ही घर के किसी कोने मे पड़े मैं सड़ता

काश! ये उम्र न ढ़लता...........

Tuesday 4 July 2017

कवि

अक्षर-अक्षर जोड़ कवि जो बनूँ
गहराईयों की तलाश में, चंद शब्दों की आड़ में हर पर जलूँ
कभी स्नेह, कभी तृष्णा
जो भी मिले, संग लिये चलूँ
काँटे-कंकड़, क्षत-विक्षत
सारे आप सहुँ
तनिक आश, तुझसे मिलन की कौतुहलपूर्वक चिलमन से है झाँकती
तुम उषा तो मैं रवि, ऐसा है वो चाहती
तेरी तलब भी है, खुद से हूँ अलग भी नहीं
अब तू ही बता, "रवि बनूँ या बनूँ मैं कवि?"
आखिर मेरे सारे भेद है तू जानती.....
ईप्सा मेरी, तेरे संग रहूँ
न केवल रवि,
अक्षर-अक्षर जोड़ कवि भी बनूँ
शब्दों की आड़ से, उम्मीदों की पाड़ से भी घनिष्ठ है प्रेम मेरा
नैनों से ही, ये हर बार कहूं........
अक्षर-अक्षर जोड़ जो कवि बनूँ



Monday 3 July 2017

शोर

हर तरफ है एक शोर
"लुटा जिसने बना वही दाता"
आखिर था वो कैसा चोर?
झूठ की ऐसी अकड़,
कमजोर पड़ी, सच्चाई की पकड़
फिर भी, भूल सबकुछ
लगा रहा हूँ मैं जोर,
चल पड़ा हूँ तेरी ओर,
न फिक्र अपनों की
न करी किसी ने जिक्र उन सपनों की,
आखिर अब भी, काली क्यों है हरेक भोर?
ऐसी तबाही, ऐसा कपट
खौफ ही खौफ था, स्नेह रहा था बस आंचल में सिमट
बारिश भी हुई पर लहु की, पखविहीन है सारे मोर।
हर तरफ है बस एक शोर
"आखिर था वो कैसा चोर?" .........