Tuesday 4 July 2017

कवि

अक्षर-अक्षर जोड़ कवि जो बनूँ
गहराईयों की तलाश में, चंद शब्दों की आड़ में हर पर जलूँ
कभी स्नेह, कभी तृष्णा
जो भी मिले, संग लिये चलूँ
काँटे-कंकड़, क्षत-विक्षत
सारे आप सहुँ
तनिक आश, तुझसे मिलन की कौतुहलपूर्वक चिलमन से है झाँकती
तुम उषा तो मैं रवि, ऐसा है वो चाहती
तेरी तलब भी है, खुद से हूँ अलग भी नहीं
अब तू ही बता, "रवि बनूँ या बनूँ मैं कवि?"
आखिर मेरे सारे भेद है तू जानती.....
ईप्सा मेरी, तेरे संग रहूँ
न केवल रवि,
अक्षर-अक्षर जोड़ कवि भी बनूँ
शब्दों की आड़ से, उम्मीदों की पाड़ से भी घनिष्ठ है प्रेम मेरा
नैनों से ही, ये हर बार कहूं........
अक्षर-अक्षर जोड़ जो कवि बनूँ



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