कब कभी आरजू पूरी होगी
न जाने
कब कम ये दूरी होगी
मोहब्बत एक इबादत है मुझमें
खुदा है तु मेरा,
तुझ बिन जिंदगी अधूरी होगी....
जाने कब कभी
यूं राह में आँखें लड़ेंगी
अपने दर्द को खामोशी संग तुझसे कहेंगी
फिर न जाने क्यों
ये आँखें बहेंगी,
ये जिंदगी मेरी तुझ संग सारे दर्द सहेगी
अधूरे ख्वाब, अधूरा मैं
भला क्यों, तु मुझसे मोहब्बत करेगी....?
Thursday 12 March 2015
कब कभी?
इक बात
राज जो मेरे दिल मे है
उसे राज ही रहने दे
खबर तो तुझे भी है
पर ये दर्द मुझे ही सहने दे
तु अटल है, हर पहर है
इसे मेरे रग मे ही बहने दे
आँखों से पढ़
जुब़ा बंद ही रहने दे
जजबात है ये मेरे
इन्हें इक बात न बनने दे.......
जो ये बात बन गए
सहम जाऊँगा मैं
उम्र तलक मुझे खामोशी संग ही चलने दे
Wednesday 11 March 2015
रहमत
दर्द-ए-हाल बताऊं मैं कैसे
गजल ये मैं गाऊं कैसे
अस्खों को छिपाऊं कैसे
हस कर मैं अपने गमो को भुलाऊ कैसे
जिंदगी जीने की चाहत
और कुछ पाने की इस आफत से
खुद को छुडाऊ कैसे
कहते है लोग की तुम्हें समाज ठुकरा देगा
पर जब मिट गया मै ही
तो समाज को अपनाऊं कैसे
गुमनामी के साये मे नहीं जीना है मुझे
अपने आशियाने मे रोशनी लाऊं मैं कैसे
अपने और पराये इस सोच से परे
सोचना चाहता हूं मै
कुछ पा कर, कुछ कर के जीना चाहता हूं मैं
पर ये बात उनको समझाऊं मै कैसे
अभी कमजोर नही हुआ हूं मैं
जोर अभी बाकी है
आंधी-तुफान थम जायेंगे
बस खुद को गुमनामी से निकाल पाऊं
ठिक वैसे
जैसे.........
"अल्लाह अपने बंदो को दे दिल से दुआ
रहमत उस पर बरसा दे तु खुदा,
जग का कर भला और अमन फैला यहाँ
मुझे क्या चाहिए जब रोशन है सारा जहां ।"