Tuesday 1 September 2015

सोचा न था

ये वक्त भी धुंधली सी परछाई बनायेगा
सोचा न था
खुद तो होकर भी नही है,
मुझे भी गुमनाम कर जायेगा
सोचा न था
अभी-अभी तो चलना सीखा था मैंने
अभी-अभी तो मुस्कुराया था
एक पल मे इतना रुलायेगा
सोचा न था
ये वक्त भी धुंधली सी परछाई बनायेगा
सोचा न था
माँ-बाप, नाना-नानी, दादा-दादी
मामा-मामी, चाचा-चाची ये तो थे ही नहीं मेरे
खुद से भी दूर कर जायेगा
सोचा न था
मासूम न सही, पर नसमझ था मैं उस वक्त
पर जब समझ आयेगी, तब भी
नहीं कोई अपनायेगा
सोचा न था
ये वक्त भी धुंधली सी परछाई बनायेगा....

Sunday 21 June 2015

असर

तुम्हें शायद एहसास नही
की कितना है हमे तुमसे प्यार
मेरी जजबातों को कभी पढ़ा समझा नही तुमने
क्या जरूरी है शब्दों से इकरार
ये भी किया हमने
कहा साफ-साफ
कि हो गया है हमे तुमसे प्यार
यकिन नहीं करोगी तुम, यह जानते थे हम
फिर भी लबों पर थी मुस्कुराहटें बेसुमार
शायद ये पागलपन है,
पर असर तुम्हारा ही है मेरे यार
बस हो गया है तुमसे प्यार.....

Saturday 20 June 2015

स्वाभिमान

जवां होकर क्या करोगे
जब जवानी मे उफान नहीं
कर्म तो बहुत है तुम्हारे
पर सुशोभित विनम्रता करती है
अभिमान नहीं
जुआ नहीं है जिंदगी
यह तो एक कड़ी है अच्छाई की
जीत तो तुम जाओगे
होना कभी परेशान नहीं
समेटे रखना ख़ुद मे अच्छाईयाँ
खोना कभी "स्वाभिमान" नहीं.......

Friday 19 June 2015

परछाई

आवाज मेरी कानो मे है जो आयी
खुश्बू है इनमे तेरी ही समाई
अजब सा जादू चढ़ गया है मुझ पर तेरी बातों का
दिल है मुस्कुराया और आँखें भी है डबडबाई
कुछ ऐसा लगाव हुआ है तुझसे
जुड़ गया हूँ ऐसे
जैसे हूँ मैं तेरी ही परछाई

Wednesday 20 May 2015

वो सो गए

वो सो गए
हमे जगा कर
कुछ ख्वाब दे गए
हमारी नींदे उडा़ कर
हम कहते रहे
उन्होने सुना नहीं, सुना भी
पर कुछ कहा नही
रह गए हम सिमट कर
वो सो गए
हमे जगा कर
अनायास ही उनसे बाते हुई
ख्वाबों मे उनसे ही मुलाकाते हुई
जब उनसे कहा ये हमने
रख दिया उन्होंने हमे झुठलाकर
सहा ये गम, कुछ मुस्कुरा कर
कुछ अस्ख बहा कर
फिर भी,
आप ही हो वो
खडे है जिनके लिए हम सिर झुकाकर.......

Thursday 12 March 2015

कब कभी?

कब कभी आरजू पूरी होगी
न जाने
कब कम ये दूरी होगी
मोहब्बत एक इबादत है मुझमें
खुदा है तु मेरा,
तुझ बिन जिंदगी अधूरी होगी....
जाने कब कभी
यूं राह में आँखें लड़ेंगी
अपने दर्द को खामोशी संग तुझसे कहेंगी
फिर न जाने क्यों
ये आँखें बहेंगी,
ये जिंदगी मेरी तुझ संग सारे दर्द सहेगी
अधूरे ख्वाब, अधूरा मैं
भला क्यों, तु मुझसे मोहब्बत करेगी....?

इक बात

राज जो मेरे दिल मे है
उसे राज ही रहने दे
खबर तो तुझे भी है
पर ये दर्द मुझे ही सहने दे
तु अटल है, हर पहर है
इसे मेरे रग मे ही बहने दे
आँखों से पढ़
जुब़ा बंद ही रहने दे
जजबात है ये मेरे
इन्हें इक बात न बनने दे.......

जो ये बात बन गए
सहम जाऊँगा मैं
उम्र तलक मुझे खामोशी संग ही चलने दे

Wednesday 11 March 2015

रहमत

दर्द-ए-हाल बताऊं मैं कैसे
गजल ये मैं गाऊं कैसे
अस्खों को छिपाऊं कैसे
हस कर मैं अपने गमो को भुलाऊ कैसे
जिंदगी जीने की चाहत
और कुछ पाने की इस आफत से
खुद को छुडाऊ कैसे
कहते है लोग की तुम्हें समाज ठुकरा देगा
पर जब मिट गया मै ही
तो समाज को अपनाऊं कैसे
गुमनामी के साये मे नहीं जीना है मुझे
अपने आशियाने मे रोशनी लाऊं मैं कैसे
अपने और पराये इस सोच से परे
सोचना चाहता हूं मै
कुछ पा कर, कुछ कर के जीना चाहता हूं मैं
पर ये बात उनको समझाऊं मै कैसे
अभी कमजोर नही हुआ हूं मैं
जोर अभी बाकी है
आंधी-तुफान थम जायेंगे
बस खुद को गुमनामी से निकाल पाऊं
ठिक वैसे

जैसे.........

"अल्लाह अपने बंदो को दे दिल से दुआ
रहमत उस पर बरसा दे तु खुदा,
जग का कर भला और अमन फैला यहाँ
मुझे क्या चाहिए जब रोशन है सारा जहां ।"